अरसे बाद एक बहुत अच्छी कविता सुनी। शुद्ध कविता कह लीजिए।वो भी किसी न्यूज़ चैनल के प्राइम टाइम कार्यक्रम में। बहुत बेहतरीन सबको अच्छी लगेगी ।
सवाल प्यार करने या न करने का नहीं था दोस्त
सवाल किसी हां या ना का भी नहीं था
सवाल तो यह था कि उन आंखों में हरियाली क्यों नहीं थी
और क्यों नहीं थी वहां खामोश पत्थरों की जगह एक झील
सवाल मिलने या ना मिलने का नहीं था दोस्त
सवाल खुशी और नाराजगी का भी नहीं था
सवाल तो ये था कि एक उदास तख्ती के लिए क्यों नहीं थी
दुनिया भर में कहीं कोई खड़िया मिट्टी
और क्यों नहीं एक भी दूब इतने बड़े मैदान में
सवाल ताल्लुकात रखने या मिटा देने का नहीं था दोस्त
सवाल ज़रूरत या ग़ैर जरूरत का भी नहीं था
सवाल तो ये था कि इतनी बड़ी दुनिया में कोई इतना अकेला क्यों था
और क्यों नहीं था उसके पास एक भी सवाल इतनी बड़ी दुनिया के लिए
-घनश्याम कुमार देवांश
Tuesday, February 21, 2012
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