Sunday, February 22, 2009

कमजोर होती धर्मनिरपेक्ष राजनीती


कमजोर होती धर्मनिरपेक्ष राजनीति
(राजनीति की जिस धारा का दंभ मुलायम सिंह दिन रात भरते हैं । उसी धारा का लहू हमारी भी राजनीतिक रगों में दौड़ता है। इसीलिए इस लेख की जरुरत महसूस हुई)

इस देश की राजनीतिक नसों में जो सबसे ज्यादा सक्रिय अल्फाज है , और जिसने १९९२ के बाद से लगातार मंडल मुद्दे को पीछे छोड़ते हुए हमारे राजनीतिक फैसलों को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है। वो है धर्मनिरपेक्षता बनाम सांप्रदायिक राजनीति । लगभग आज़ादी मिलने के बाद से ही इस शब्द के विशाल आवरण से पूरा भारतीय राजनीतिक परिदश्य आभामंडित है। और बस धर्मनिरपेक्षता को बरकरार रखने के लिए ही हमने बड़ी-बड़ी कुर्बानियां दी , सिर्फ गुजरात ही नहीं , बस मऊ, धार और भागलपुर ही नहीं , इस देश का एक बड़ा हिस्सा बलवे की आग में जला। देश की आत्मा कही जाने वाली संविधान की मूल स्वर धर्मनिरपेक्षता को बचाए रखने के लिए हमने निरंतर अपनी सत्ता को दाव पर लगाया । बाबरी मस्जिद बिध्वंस के बाद के तथाकथित सांस्कतिक राष्ट्रवाद का सामना किया, गुजरात और देश के अलग-अलग हिस्सों के गहरे जख्मों को साफ किया। देश के सीमाओं के पार के आतंकवाद को झेलते हुए भी अपनी आत्मा अछुण्ण रखी।

इकबाल का मशहूर शेर कुछ बात है कि मिटती हस्ती नहीं हमारी , इतने दिनों के बाद ग़लत साबित होने लगा , और हमें अपनी हस्ती मिटती दिखाई देने लगी। अचानक ये लगने लगा कि , देश में धर्मनिरपेक्ष राजनीति कमजोर होने लगी, सच्चर समिति रिपोर्ट की आंच से झुलसी सांप्रदायिक राजनीति के जख्मों को मानो मरहम मिल गया । सबसे पहले धर्म की राजनीति करने वालों को गुजरात चुनाव परिणाम ने संबल दिया। और गुजरात चुनाव से पहले तक राम की परछाई से कतराकर चल रही भारतीय जनता पार्टी अचानक से राम मंदिर के जिन्न को बोतल से बाहर निकालने की फिराक में लग गई। उसके बाद धर्मनिरपेक्ष राजनीति को सबसे बड़ा झटका तब लगा जब उत्तर प्रदेश के एक ही मंच पर मुलायम और कल्याण सिंह साथ दिखे। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश में सक्रिय राजनीति करने वाले दो नेताओं मायावती और मुलायम सिंह में जो बड़ा फर्क भाजपाई दूरी को लेकर था, उसे कल्याण की दोस्ती ने पाट दिया। अब उत्तर प्रदेश की सक्रिय राजनीति में कोई अछूत नहीं। मुलायम की सपा ने आडवाणी को क्लीन चीट दे दी, मुलायम भले भूल सकते हों कि अपने पूरे संसदीय राजनीति में जितनी बातें उन्होंने धर्मनिरपेक्ष राजनीति की दुहाई देते हुई कही होंगी उतना शायद ही इस देश के किसी और नेता ने कहा हो। मुळायम भूल गए होंगे कि उन्होंने मायावती के खिलाफ में जितने संगीन आरोप लगाए हैं। उनमें से एक आरोप ये भी है कि मायावती और भाजपा का पुराना साथ रहा है। अब मुलायम सिंह अपने नए राग और नए याराने के बारे में क्या कहेंगे। हमें अमर सिंह से कोई गिला नहीं , क्योंकि हमें न तो उनसे कोई उम्मीद है , और न ही हमारी जमात उन्हें समाजवादी मानती है । और हम उनके हाथो समाजवाद का कुछ हित चाहते भी नहीं है। लेकिन अफसोस इस बात का है कि जिसने रहनुमाई का दावा किया वही रहजन निकला। फिराक का एक मशहूर शेर है ,,,
तू इधर-उधर की न बात कर,

ये बता कि काफिला क्यों लूटा।

तेरी रहबरी का सवाल है,

मुझे राहजन से गरज नही।
इस अंधेरी रात में जितने दिए जल रहे थे वो भी बुझने लगे। ऐसे मौके पर साहिर साहब याद आ रहे हैं, जिन्होंने बहुत पहले ही कहा था कि ,,, वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा,,,,। इस देश का राजनीति इतिहास भले बाद में लिखा जाएगा , और इतिहासकारों की नज़रों में मुलायम की क्या क़ीमत होगी ये भी बाद में देखी जाएगी। लेकिन हमने मुळायम सिंह को अपना फ़ैसला सुना दिया है। और हमारा फ़ैसला मुलायम को जार्ज की बिरादरी में खड़ा कर समाजवाद को कलंकित करने वालों में शुमार करता है।
राजेश कुमार

4 comments:

अखिलेश चंद्र said...

Raajneeti ki sahi tasveer khinchane k liye shukriya. Waaqai taaref k qaabil kaam kiya hai.lekin george ko Mulayam ke saath khada karana kuchh jama nahin.

aahsas said...

देश के १५ फीशदी मोमिनों के वोट को मैनेज करना ही धर्मनिरपेक्षता नहीं है इसका मतलब कुछ और भी है जहाँ तक मौलाना मुलायम सिंह की बात है तो इनको सेकुलारिसम का प्रमाणपत्र लेने के के लिए किसी के मुहर की जरुरत नहीं है ! कल्याण सिंह को गले लगाकर इन्होने कही न कही धर्मनिरपेक्षता को मजबूत ही किया है क्योकि .. सुबह को भुला अगर शाम को घर लौट आए तो उसे भुला नहीं कहते ! यह भी जन सन्देश गया की कल्याण सिंह भूले-भटके विचारधरा पर चल रहे थे मुलायम ने उन्हें सही रास्ता दिखा देय भले ही इस मिलन में कुछ स्वार्थ हो लेकिन बदलाव तो आया न ? फासीवादी ताकते कमजोर तो हुई न ?

इतिहास में यह घटना कल्याण का हृदयपरिवर्तन कहलाएगा या कुछ और यह तो भविष्य बताएगा लेकिन मुलायम ने इस परिवर्तन का श्रेय ले लिया है चाहे मीडियाकर लाख शोर मचा ले !जय हो !

BALAM PARDESIYA said...

jiska jalwa kayam hai uska naam MULAYAM hai !!

Unknown said...

हमें तो खासकर उस दिन का इंतजार रहेगा जिस दिन राजनीति की चौसर पर आप अपनी बाजी खेलेंगे....और जहां तक इस तस्वीर की बात है तो गंगा के किनारे, सेतु से जुड़ती...ये बयां करती है कि आप राजनीति की टूटी विचारधाराओं को एसी तरह एक साथ जोड़ेंगे.....

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