Saturday, April 28, 2018

आधुनिक भारतीयता के प्रतीक पुरुष का जाना- राजेश कुमार


सच्चर साहब हमारे बीच नहीं रहेअब हम केवल कल्पना कर सकते हैं कि उनका मौजूद रहना सियासी और समाजी गिरावट के इस दौर में कितना जरूरी था। उम्र के आखिरी पड़ाव तक सच्चर साहब आम लोगों के लिए लड़ते रहे। जिस किसी ने भी इंसाफ के लिए आवाज दी, झुकी कमर के बावजूद कोर्ट सी लेकर गली-कूचों तक उस आवाज़ के साथ खड़े हो गए । अपनी आखिरी सांस तक वे अमनपसंद और बराबरी के समाज के निर्माण में अपनी भूमिका निभाते रहे । सच्चर साहब के दिल में पीड़ितों के लिए कितनी तड़प थी यह हम 1984 के दंगों से लेकर डेरा सच्चा सौदा के राम रहीम के मामले तक देख सकते हैं । सच्चर साहब ने 1984 के दंगों में मरे गए सिखों के परिवारों को दोषियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया। जब पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के सीबीआई जांच के फैसले को डेरा सच्चा सौदा ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौत दी तो राजेंद्र सच्चर ही पीड़िता के पक्ष में खड़े हुए। उसके बाद ही सीबीआई जांच शुरू हो पाई। 
सच्चर साहब बड़े राजनैतिक परिवार से थे। उनके पिता भीमसेन सच्चर स्वाधीनता सेनानी थे जो बाद में संयुक्त पंजाब के मुख्यमंत्री बने और राज्यपाल भी रहे थे। बचपन से ही सच्चर साहब ने कांग्रेस के बड़े नेताओं को अपने घर में आते-जाते देखा था। लेकिन फिर भी उन्होंने विपक्ष की मुश्किल राह चुनी। सोशलिस्ट पार्टी से अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया और आजीवन सोशलिस्ट पार्टी से जुड़े रहे। 
सच्चर साहब से जुड़ी कई बातें याद आती हैं। दिल्ली विधानसभा चुनाव 2013 और लोकसभा चुनाव 2014के दौरान मैंने सच्चर साहब की सक्रियता देखी थी। सच्चर साहब सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के संस्थापक सदस्यों में से थे और उनका मानना था कि केवल सोशलिस्ट पार्टी ही धर्मनिरपेक्ष और प्रगतिशील भारत की लड़ाई लड़ सकती है। लोकसभा चुनाव के दौरान सच्चर साहब को मैंने खराब सेहत के बावजूद पार्टी उम्मीदवार प्रेम सिंह के पक्ष में पर्चा बांटते देखा। उम्मीदवार के पक्ष में पर्चे बांटते हुए सच्चर साहब एक ज्वैलरी की दुकान में पहुंचे। वहां उन्होंने दुकानदार से कहा कि 'जितना खरा आपका कारोबार है (सोने का) उतना ही खरा हमारा उम्मीदवार है'। इसके बाद एक सभा में जस्टिस सच्चर ने कहा था कि बीजेपी की सांप्रदायिक और नवउदारवादी राजनीति का मुक़ाबला केवल डॉ. प्रेम सिंह जैसे लोग ही कर सकते हैं। साथी अब्दुल कयूम ओखला विधानसभा से सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार थे। उनके लिए सच्चर साहब ने छोटी-छोटी नुक्कड़ सभाओं में शिरकत की और वोट माँगा. यह अलग बात है कि इस मुस्लिम-बहुल सीट पर सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार को 145 वोट मिले!     

सच्चर साहब को लोग कई वजहों से जानते थे। सबसे पहले दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और भारत में कानून के एक बड़े जानकार के तौर पर । सच्चर साहब दुनिया में एक मजबूत मानवाधिकार कार्यकर्ता की भी पहचान रखते थे। हाल के दिनों में सच्चर साहब की सबसे बड़ी पहचान उनकी अगुवाई में मुस्लिम अल्पसंख्यकों की शैक्षिक, आर्थिक, सामाजिक स्थिति की जाकारी के लिए बनाई गई सच्चर कमेटी की रिपोर्ट और सिफारिशों के चलते थी। इस रिपोर्ट ने इस देश के सामाजिक और राजनीतिक हलकों में तीखी बहस कड़ी कर दी। सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय, जो आजादी के बाद से ही लगातार तुष्टिकरण के आरोप झेल रहा था,सच्चर साहब की रिपोर्ट ने उन आरोपों को तथ्यों के आधार पर गलत साबित किया। रिपोर्ट में सारे आंकड़े केंद्र और राज्य सरकारों के रिकॉर्ड से लिए हैं। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट ने न केवल अल्पसंख्यक समुदाय को अपनी आवाज़ उठाने के लिए एक आधार प्रदान किया, बल्कि उनकी व्यवस्था में समुचित भागीदारी सुनिश्चित करने की दिशा में एक शुरुआत भी की है। उम्मीद है कारपोरेट परस्त सियासी दलों की सत्ता बदलेगीऔर मंडल कमीशन की तरह सच्चर कमेटी की रिपोर्ट भी लागू होगी।
जो भी हो, सच्चर साहब ने एक समाजावादी कार्यकर्ता के तौर पर अपना सफ़र शुरु किया और समाजावादी कार्यकर्ता के रूप में ही इस दुनिया से विदा ली। सच्चर साहब ने देश को दिशा देने वाले डॉ लोहिया जैसे बड़े लोगों के साथ काम किया था, हमारी खुशकिस्मती है हमें उनके साथ काम करने का मौका मिला!  मेरे जैसे युवाओं के लिए लिए सच्चर साहब आधुनिक भारतीयता के प्रतीक पुरुष थे। वे लोहिया की तरह भारत की समृद्ध परंपरा में निहित प्रगतिशील धाराओं को आत्मसात करके आधुनिक विचारों का स्वागत और निर्माण करने वाले व्यक्ति थे। उनसे प्रेरणा लेकर हम समाजवादी विचारधारा और आंदोलन का काम करते रहेंगे। उनको हमारी यही श्रद्धांजलि है।      
राजेश कुमार
टीवी पत्रकार

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