Sunday, July 30, 2017

नीतीश कुमार और शरद यादव : क्या बिछड़ेगी जोड़ी!-प्रेम सिंह

(इस वक्त बिहार के साथ-साथ देश की राजनीति की निगाहें शरद यादव की तरफ लगी हैं। शरद के सामने ऐतिहासिक और निर्णायक घड़ी है। कुछ शरद समर्थक उन्हें समाजवादी मसीहा बताकर उनसे लड़ने की अपेक्षा रख रहे हैं, तो कुछ नीतीश समर्थक उन्हें खारिज कर रहे हैं। ऐसे में सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ प्रेम सिंह का ये बयान सामने आया है।)

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रातोंरात पाला-बदल कर जद (यू) के वरिष्ठ नेता शरद यादव को असमंजस में डाल दिया। जद (यू) के कई अन्य नेताओं को भी उनके इस फैसले पर आश्चर्य हुआ और उनके लिए भी असमंजस की स्थिति बन गई। ज़ाहिर है, नीतीश कुमार ने मोदी-शाह की जोड़ी (मोदी-शाह की जोड़ी इसलिए लिखा है कि भाजपा में वह आंतरिक लोकतंत्र नहीं बचा है, जिसके लिए वह कांग्रेस के बरक्स जानी जाती थी) के साथ जो भी डील की, उसका उनकी पार्टी के कतिपय सांसद-विधायक नेताओं तक को नहीं पता था। पार्टी पदाधिकारियों और सामान्य कार्यकर्ताओं की बात ही छोडिये. इससे पता चलता है कि जद (यू) आंतरिक लोकतंत्र वाली पार्टी नहीं है. यह भी एक व्यक्ति के सत्ता-स्वार्थ वाली पार्टी है. राजद से इस पार्टी का फर्क इतना है कि नीतीश का 'परिवार' सत्ता-स्वार्थ के लिए एकजुट उनके 'छवि निर्माता' समर्थकों से लेकर संघ परिवार तक फैला है. छवि निर्माताओं की टीम के साथ राजनीति करने का यह 'गुण' मोदी के साथ नीतीश की निकटता का एक महत्वपूर्ण पहलू है. वर्तमान राजनीति की मोदी-शैली अमेरिका से उधार ली गई है. कांग्रेस समेत मुख्यधारा राजनीति के ज्यादातर नेताओं ने यह शैली अपनाई हुई है. छवि-निर्माण के लिए कंपनियों से लेकर विशेषज्ञ व्यक्तियों तक एक बड़ा बाज़ार उपलब्ध है. कार्पोरेट राजनीति इसी बाज़ार के दम पर सफलतापूर्वक चल रही हैनीतीश कुमार के इस्तीफे और फिर भाजपा के साथ मिल कर अगले ही दिन मुख्यमंत्री की शपथ लेने की कार्रवाई इसीलिए की गई ताकि शरद यादव और उनकी तरह असमंजस में पड़ने वाले नेताओं के सामने साथ आने के अलावा कोई रास्ता न बचे. यह फिर मोदी की शैली का लघु विस्तार है. बड़े स्तर पर मोदी ने भाजपा के दिग्गज नेताओं को अपने पीछे चलने को बाध्य किया हुआ है.

शरद यादव के एक समर्थक ने घटना वाले दिन सोशल मीडिया पर लिखा कि 'उन्हें मंत्री और महान बनने के बीच फैसला करना है'. सुना है लालू प्रसाद यादव ने भी उन्हें नेता कबूला है और विपक्ष को रास्ता दिखाने को कहा है. कुछ धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय की विचारधारा को मानने वाले युवा साथी उन्हें घेरे हुए हैं कि वे प्रलोभन में न आयें. हमारा कहना है शरद यादव महान तो क्या बनेंगे, लेकिन अगर वास्तव में भाजपा के साथ नहीं जाने का फैसला करते हैं तो समाजवादी आंदोलन के साथ उन्होंने जो लम्बा द्रोह किया है, उस 'पाप' को थोड़ा जरूर धो पायेंगे

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