Monday, December 21, 2015

प्रवास की पीड़ा नहीं, प्रेम कहानी है ‘नॉन रेज़िडेन्ट बिहारी’-राजेश कुमार


अगर आप भी मेरी तरह ‘नॉन रेज़िडेन्ट बिहारी’ खरीदकर लाए हैं, ये सोचकर कि इसमें पलायन की पीड़ा होगी, प्रवासी बिहारियों का दुख दर्द होगा। अपनी मिट्टी की खूशबू से बिछड़ने की कसक होगी। उस बेइंतहा बेबसी की दास्तान होगी, जो आज भी लाखों बिहारी और पुरवईया युवाओं को अपनी मिट्टी छोड़कर दर-बदर की ठोकर खाने को मजबूर करता है। तो ‘नॉन रेज़िडेन्ट बिहारी’ पढ़कर आपको निराशा हाथ लगेगी। किताब ना तो पलायन की पीड़ा बताती है, ना ही ज़िंदगी को बेहतर ढंग-ढर्रे से जीने को जद्दोजहद में लगे लाखों-करोड़ों प्रवासियों की दास्तान बयान करती है।

दरअसल ‘नॉन रेज़िडेन्ट बिहारी’ एक लंबी प्रेम कहानी है, जिसे राधाकृष्ण प्रकाशन ने उपन्यास की शक्ल में प्रकाशित किया है। ‘नॉन रेज़िडेन्ट बिहारी’ यूपीएससी का ख्वाब संजोकर दिल्ली आए एक ऐसे युवक राहुल की दास्तान है। जो बिहार के कटिहार में अपने कॉलेज की दोस्त शालू से मोहब्बत करता है। अब चूंकि नायक दिल्ली में है और नायिका बिहार में, तो होता ये है कि दिल्ली की कहानी हर वक़्त बिहार में ही रहती है। इसीलिए नॉन रेज़िडेन्ट वाली फीलिंग नहीं आती है। उपन्यास यूपीएससी का ख्वाब संजोए एक युवा और उनके दोस्तों के ईर्द गिर्द बुनी गई है। लेकिन कहीं से भी ये किताब दिल्ली में रहनेवाले पुरवईया छात्र-छात्राओं की परेशानी की प्रतिबिंबित नहीं करती है।‘नॉन रेज़िडेन्ट बिहारी’ शुरू तो होती है यथार्थ के धरातल पर, लेकिन कहानी क्लाइमेक्स तक आते-आते फिल्मी हो जाती है। जिस तरीके से नायक यूपीएससी की मेन्स परीक्षा छोड़कर नायिका की शादी रोकने निकलता है, और जिस तरीके से नायिका उससे मिलती है। कहानी पूरी तरह से फिल्मी बन जाती है। 

एक चीज क़िताब में बड़ी ख़ास है, जो आज के दौर में बेहद ज़रूरी है। ये क़िताब धार्मिक उन्माद और असहिष्णुता के बीच अपने कई प्रसंगों और संवादों के जरिए एक सेक्यूलर समाज को मजबूती से गढ़ती नज़र आती है। अब्दुल और गोपी के बीच तक़रार और फिर प्रगाढ़ दोस्ती इसकी मिसाल है। क़िताब की एक और ख़ासियत है, ये बेहद रोचक है, और जब आप पढ़ने बैठेंगे, तो बिना खत्म किए नहीं उठेंगे। यूपीएससी की तैयारी के बारे में आपको जानकारी हाथ लगेगी। और अगर सबक लेना चाहेंगे, तो सबक मिलेगा कि प्रेम के आगे कॅरियर बनाने का सपना कितना बौना साबित होता है, लाखों-करोड़ों पुरवईया युवाओं के आगे।

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