Wednesday, September 5, 2018

लो कम्यूनिस्टों ने भी पहन ली कॉर्पोरेट की टोपी

(पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट: जहां मार्क्स और लेनिन पर भारी है दावेदारी)

वाराणसी संसदीय सीट से आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार अरविंद केजरीवाल ने जब गंगा में डुबकी लगाई थी तो उस वक्त आम आदमी पार्टी के नेता और स्वारज इंडिया के संस्थापक योगेंद्र यादव ने कहा था कि 'आज गंगा कुछ पवित्र ही हो गई है'। 28 अगस्त को जब समाचार पत्रों में आम आदमी पार्टी के पूर्वी दिल्ली कार्यालय के उद्घाटन के दौरान हवन करती आतिशी मर्लेना और दूसरे नेताओं की फोटो देखी तो मैंने सोचा कि आज अगर योगेंद्र यादव AAP में होते तो कुछ यूं कह रहे होते 'पूर्वी दिल्ली कार्यालय से निकले हवन के धुएं ने पूर्वी दिल्ली की हवा को दैवीय सुगंध से भर दिया है'।

बात केवल एक चुनावी कार्यालय के उद्घाटन करने के तरीके भर की नहीं है। दरअसल ये आडंबर है आम आदमी पार्टी की राजनीति का जिसके वशीभूत वामपंथी विचारक और नेता अपनी सारी जमा पूंजी लुटाने में लगे हैं। ख़ैर अब ना तो योगेंद्र यादव आम आदमी पार्टी में हैं और ना ही उनका कोई बयान आया है । असली ख़बर ये है कि पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट से 'आम आदमी पार्टी' की संभावित उम्मीदवार आतिशी ने मार्क्स और लेनिन को जोड़कर सृजित किए गए अपने सरनेम की आहुति दे दी है। आतिशी के अति वामपंथी विचारक माता पिता का दिया गया मर्लेना सरनेम आतिशी के साथ पिछले 37 सालों से जुड़ा हुआ था। लेकिन मार्क्स और लेनिन को जोड़कर सृजित किया गया सरनेम पूर्वी दिल्ली लोकसभा संसदीय सीट की दावेदारी के आगे पत्तों की तरह उड़ गया। इस बदलाव को 'आम आदमी पार्टी' ने आतिशी का निजी फैसला कहा है साथ ही बीजेपी पर आरोप लगाया है कि मर्लेना सरनेम देखकर वो मतदाताओं को ईसाई कहकर भड़का सकते हैं। इस आरोप ने एक बार फिर से 'आम आदमी पार्टी' की राजनीतिक विवेकहीनता ज़ाहिर की है। सवाल सीधा है कि क्या अगर किसी इसाई को चुनाव लड़ना हो तो क्या वो भी अपना नाम बदल ले। आम आदमी पार्टी के हवाले से इस तरह की भी ख़बर है कि सिर्फ आतिशी रखने या आतिशी सिंह लगाने से पूर्वी दिल्ली की अल्पसंख्यक आबादी का रूझान होगा। ज़ाहिर है ये 'आम आदमी पार्टी' की राजनीतिक नासमझी और सांप्रदायिक-जातिवादी सोच से ज्यादा कुछ नहीं।

आतिशी के नाम से मर्लेना हटाए जाने की ख़बर के अगले ही दिन एक और ख़बर समाचारपत्रों में 'आम आदमी पार्टी' के पूर्व नेता और पूर्व पत्रकार आशुतोष को लेकर भी सामने आई। आशुतोष ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और 'आम आदमी पार्टी' पर आरोप लगाया है कि लोकसभा चुनाव में जब आशुतोष दिल्ली की चांदनी चौक लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे थे तो पार्टी ने जबरदस्ती उनके नाम के आगे गुप्ता सरनेम लगाया था। जबकि आशुतोष पूरी ज़िंदगी टीवी पत्रकारिता बग़ैर सरनेम लगाए आशुतोष के नाम से ही करते रहे। ज़ाहिर है ऐसा चांदनी चौक सीट पर वैश्य मतदाताओं को रिझाने के लिए किया गया था । हालांकि ये भी सच है कि आशुतोष को तभी इस बात का विरोध करना था ।

बात एक बार फिर से करते हैं मर्लेना की, जिन्होंने केजरीवाल की विचारधारा विहीन राजनीति के शरण में मार्क्स और लेनिन दोनों को कुर्बान कर दिया है। ये वामपंथ की नई चिंतन धारा है जिसने मार्क्सवाद को केजरीवाल के चरणों में समर्पित कर दिया है। 2014 के लोकसभा चुनाव में  वाराणसी संसदीय सीट से सीपीएम के टिकट पर हीरालाल यादव चुनाव लड़ रहे थे। लेकिन दिल्ली से मार्क्सवादी कार्यकर्ता और बुद्धिजीवी केजरीवाल के पक्ष में माहौल बनाने के लिए बनारस जा रहे थे। हालांकि कॉर्पोरेट राजनीति के आगे नतमस्तक होते कम्यूनिस्ट नेतृत्व के इस ख़तरे से डॉ प्रेम सिंह ने उस वक्त भी अगाह कराया था। डॉ प्रेम सिंह दो बार पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट से चुनाव लड़ चुके हैं। वे जिस ख़तरे को भांप रहे थे, भारत के बुद्धिजीवियों के सबसे मजबूत धड़े वामपंथियों ने या तो आसन्न खतरे को नज़रअंदाज़ कर दिया या जानबूझकर संकट सामने देखकर आंखें मूंद ली। नतीजा नरेंद्र मोदी सरकार की भूमिका लिख दी गई। हालात अब भी नहीं बदले आतिशी मर्लेना का राजनीतिक हृदय परिवर्तन वामपंथी राजनीति के विचलन की सबसे ताजा मिसाल है।
  
दिल्ली में जब कॉर्पोरेट की अगुवाई में चले आंदोलन की कोख से 'आम आदमी पार्टी' का गठन हुआ तो समाजवादी सबसे पहले विचलित हुए। समाजवादियों के बीच कॉर्पोरेट की टोपी पहनने की होड़ लग गई। 'आम आदमी पार्टी' और उसके नेता अरविंद केजरीवाल ने इस्तेमाल के बाद समाजवादियों का क्या हाल किया ये किसी से छिपा नहीं है। अब बारी कम्यूनिस्टों की है, जो उसी बेताबी से कॉर्पोरेट टोपी पहनने में लगे हैं।
-राजेश कुमार

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