Tuesday, October 21, 2008

कसक


जिंदग जब कहीं दूर रहने लगे

फ़ासले मौत के तब सिमटने लगे
वार उसने न गहरा बहुत था किया

ये तो हम थे कि खंजर पकड़ने लगे
उसने अपनी तरफ से कमी कुछ न की,

ये तो हम थे कि हिज्र तड़पने लगे।
वो तो कहते हैं कुछ भी लिखा ही नहीं,

हम दिल अपना,उनकी आंखों में पढ़ने लगे।
जाते-जाते पलट कर भी देखा नहीं,

कोई सुन ना ले, हम ऐसे सिसकने लगे।
जहां उम्र को निकलना था सफर के लिए

हम उस मोड़ पर जा ठहरने लगे।
जिंदगी जब कहीं दूर रहने लगे,

फ़ासले मौत के तब सिमटने लगे।

राजेश कुमार
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