Saturday, February 28, 2009

कानून को इंतजार ?

कानून क्यों कर रहा है इंतजार
एक ख़बर मिली कि उड़ीसा के कंधमाल में हुई सांप्रदायिक हिंसा की जांच कर रहे जस्टिस पाणिग्रही इंतजार करते रहे , लेकिन कंधमाल में हुई सांप्रदायिक हिंसा का कोई चश्मदीद नहीं आया। जस्टिस पाणिग्रही कंधमाल के समीप खड़े थे। लेकिन कोई ऐसा नहीं मिला जो दंगे के खिलाफ बयान दे सके। कानून इंतजार करता रहा , और लोग अपने रोजमर्रा के काम में लगे रहे। वे लोग जिनके घर आतिशजनों ने फूंके हैं। वे लोग जिनके अपनों को मारा गया है। वे लोग जिनके उन बस्तियों को उजाड़ा गया , उन घरों को जलाया गया। जहां सदियों से वे भाईचारे के साथ रहे थे। लेकिन सियासत के हस्तछेप ने सबकुछ उलटा पुलटा कर दिया। और सदियों से अमन पसंद लोग एक दूसरे को मरने मारने पर उतारू हो गए। मुन्नवर राणा का एक शेर है कि लहू कैसे बहाया जाए ये लीडर बताते हैं,लहू का जायका कैसा है ये खादी बताती है।
सचमुच ये स्थिति बहुत ही विकट है। और चिंता खड़ी करती है। ये घटना तो साफ दिखाती है , कि लोगों का विश्वास उठ गया है। लोग कानून को बस राजनीतिक जांच भर समझने लगे है। आज अगर कंधमाल में कोई गवाही देने नहीं आया तो । हो सकता है लोग कल बड़े हादसो के बाद चुप बैठ जाएँ । जब समाज चुप्पी साधने लगे तो स्थिति बहुत भयानक होती है। जिसका अंदाजा शायद हम आज नहीं लगा पा रहे हैं।
राजेश कुमार

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