Thursday, March 5, 2009

धूमिल का सच

मुझसे कहा गया कि

संसद देश की धड़कन को

प्रतिबिंबित करने वाला दर्पण है

जनता को

जनता के विचारों का

नैतिक समर्पण है

लेकिन क्या यह सच है?

या यह सच है कि

अपने यहां संसद -तेली की वह घानी है

जिसमें आधा तेल है और आधा पानी है

और यदि यह सच नहीं है

तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को

अपनी ईमानदारी का मलाल क्यों है?

जिसने सत्य कह दिया है

हैउसका बुरा हाल क्यों है?

धूमिल

1857 का विद्रोह, ‘झंडा सलामी गीत’ और राष्ट्रीयता का विचार- प्रेम सिंह

(ये लेख डॉ प्रेम सिंह ने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की 167वीं वर्षगांठ पर जारी किया था, सबको पढ़ना चाहिए। पता चलेगा कि राष्ट्रीयता की भावना को...