(उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी और मुलायम के सियासी परिवार में जो कुछ भी चल रहा है, इसमें कुछ भी नया नहीं है। जिन्हें खतरे का अंदेशा है वो सालों से इस पर लिख रहे हैं। मूल मुद्दा परिवार की कलह नहीं है, मूल प्रश्न ये है कि क्या मुलायम सिंह वाकई डॉ लोहिया और समाजवादी धारा की सियासत का प्रतिनिधित्व करते हैं। क्या ये समाजवाद सांप्रदायिकता और नव उदारवाद के गठजोड़ को चुनौती देने वाला है। इसपर जनवरी 2009 में डॉ प्रेम सिंह ने जनसत्ता में विस्तार से लिखा था। जिसका जिक्र स्वर्गीय प्रभाष जोशी ने अपने कागद कारे कॉलम में किया था। एक बार फिर से इस लेख को पढ़ने की जरूरत है.... समझने वालों का क्या है, वो तब भी नहीं समझे...अब भी नहीं समझ रहे....।)
उत्तर प्रदेश की समाजवादी
पार्टी के तत्वावधान में जो ‘समाजवाद’ चल रहा है,
उस पर टिप्पणी
करने का हमारा कतई इरादा नहीं था। जरूरत भी नहीं थी, क्योंकि हम लिख चुके हैं कि अपने को छोटे लोहिया और छोटे मधु
लिमये कहलाने के शौकीन नेता वाकई काफी छोटे हो गए हैं - छोटे अमर सिंह! ‘समाजवादी नंगे होते हैं’ - पिछले दिनों मुलायम सिंह ने मायावती को ललकारते हुए जब यह
जुमला कहा था तो समाजवादी पार्टी की सच्चाई खुद ही बयान कर दी थी। उसके बाद किसी
और की टिप्पणी के लिए कुछ बचता ही नहीं है।
हमें यह टिप्पणी एक विशेष
स्थिति में करनी पड़ रही है। इस साल 23 मार्च से डॉ.
राममनोहर लोहिया का जन्मशताब्दी वर्ष शुरू होने जा रहा है। जैसा कि ऐसे
अवसरों पर होता है, पार्टियां और संगठन लोहिया की याद में कार्यक्रमों का आयोजन
करेंगे। समाजवादी पार्टी भी कुछ कार्यक्रमों का आयोजन जरूर करेगी। बिना शताब्दी
वर्ष के भी सपाई लखनउ की सड़कों पर लोहिया का जनाजा अक्सर निकालते रहते हैं। हाल
में िफल्मी हस्ती संजय दत्त और उनकी विवादास्पद पत्नी मान्यता के कंधें पर लोहिया
का जनाजा निकाला गया। जाहिर है,
शताब्दी वर्ष में
वह कुछ ज्यादा धूमधाम से निकाला जाएगा।
हमें यह जान कर हैरानी
हुई है कि ऐसे समाजवादी बुिद्धजीवी और कार्यकर्ता जो समाजवादी आंदोलन के पराभव और
अपने को समाजवादी कहने वाले नेताओं के पतन पर चिंता व्यक्त करते रहते हैं, समाजवादी पार्टी के सहारे लोहिया का जन्मशताब्दी वर्ष मनाने
की योजना बना रहे हैं। इसीलिए हमें यह टिप्पणी लिखनी पड़ी है। यह योजना समाजवादी
पार्टी के उपाध्यक्ष जनेश्वर मिश्रा की अगुआई में उनके दिल्ली स्थित निवास पर
बनाई जा रही है। अगर ऐसा होता है,
यानी समाजवादी
पार्टी के तत्वावधन में लोहिया जन्मशताब्दी वर्ष मनाया जाता है, तो उसमें शामिल साथी समाजवादी पार्टी के ‘समाजवाद’
को वैधता प्रदान
करेंगे। इस अर्थ में कि वह डॉ. लोहिया के विचारों और आदर्शों पर चलने वाली पार्टी
है। सभी जानते हैं समाजवादी पार्टी को अमर सिंह चलाते हैं। तो सीधे संदेश यही
जाएगा कि अमर सिंह जिन ‘विचारों’ और ‘आदर्शों’ पर पार्टी चला रहे हैं उनका कुछ न कुछ साझा लोहिया के
विचारों और आदर्शों से है। जाहिर है, साथियों के इस
काम से समाजवादी आंदोलन की जो थोड़ी-बहुत साख अन्य राजनीतिक और बौिद्धक समूहों
में बची हुई है, वह भी दांव पर लग जाएगी।
बेहतर हो कि साथी जनेश्वर
मिश्रा और मुलायम सिंह को अमर सिंह के नेतृत्व में अपना काम करने दें। लोहिया
जन्मशताब्दी वर्ष उन्हें सदबुिद्ध दे, यह भी कामना
करें। लेकिन उन्हें लोहिया जन्मशताब्दी वर्ष मनाना है तो अपने स्तर और बल पर वह
काम करें। यह सच्चाई तो साथी भी जानते हैं कि ‘लोहिया के लोग’ वहां नहीं रहते
जहां साथी जाकर बैठकें करते हैं। वे खेतों, कारखानों,
खदानों, विश्वविद्यालयों में फैले हैं। अगर प्रतिबद्धता और लगन के
साथ काम करें तो एक साल में देशव्यापी स्तर पर विचारपरक और आंदोलनपरक कार्यक्रम आयोजित किए जा सकते हैं। गंभीर एकेडेमिक सेमिनार
आयोजित करने में तो कोई कठिनाई हो ही नहीं सकती है। भारत के बाहर कम से कम एशिया
के कुछ देशों में कार्यक्रम आयोजित करने
का प्रयास भी होना चाहिए। और हो सके तो दुनिया के अन्य हिस्सों में भी।
इस उद्यम में विद्यार्थी
युवजन सभा, सामयिक वार्ता, सोशलिस्ट
फ्रंट, लोकशक्ति अभियान, राष्ट सेवा दल, साहित्य वार्ता, युवजन सांस्कृतिक मंच, समाजवादी साहित्य संस्थान, युवा संवाद और युवा भारत में काम करने वाले गांधीवादी समाजवादी बिरादरी के साथी अन्य सहमना संगठनों और व्यक्तियों के साथ मिल कर जुट सकते हैं। दरअसल, नजर भव्यता पर नहीं, सार्थकता पर होनी चाहिए। और उसके साथ साख बचाने पर। युवा पीढ़ी में आज भी ऐसे छात्र और नौजवान हैं जो गांधी और लोहिया से प्रभावित होते हैं। लेकिन संप्रदायवाद और जातिवाद की राजनीति करने वाले तथाकथित समाजवादियों का भ्रष्ट चाल-चलन और रीति-नीति उन्हें रास्ते से विचलित और कई बार विरत करते हैं। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण होगा अगर साथी लोहिया जन्मशताब्दी वर्ष जैसा सौ साल बाद आया अवसर समाजवादी विचारधारा और आंदोलन की साख को बचाने के काम में नहीं लाते।
फ्रंट, लोकशक्ति अभियान, राष्ट सेवा दल, साहित्य वार्ता, युवजन सांस्कृतिक मंच, समाजवादी साहित्य संस्थान, युवा संवाद और युवा भारत में काम करने वाले गांधीवादी समाजवादी बिरादरी के साथी अन्य सहमना संगठनों और व्यक्तियों के साथ मिल कर जुट सकते हैं। दरअसल, नजर भव्यता पर नहीं, सार्थकता पर होनी चाहिए। और उसके साथ साख बचाने पर। युवा पीढ़ी में आज भी ऐसे छात्र और नौजवान हैं जो गांधी और लोहिया से प्रभावित होते हैं। लेकिन संप्रदायवाद और जातिवाद की राजनीति करने वाले तथाकथित समाजवादियों का भ्रष्ट चाल-चलन और रीति-नीति उन्हें रास्ते से विचलित और कई बार विरत करते हैं। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण होगा अगर साथी लोहिया जन्मशताब्दी वर्ष जैसा सौ साल बाद आया अवसर समाजवादी विचारधारा और आंदोलन की साख को बचाने के काम में नहीं लाते।
एक खबर यह भी आई है कि
लोहिया जन्मशताब्दी वर्ष की शुरुआत के उपलक्ष में 21 और 22 मार्च को सभी
समाजवादियों का दिल्ली में इक्ठ्ठा होने का आह्वान किया गया है। भले ही वह किसी भी
पार्टी में हों। ‘जनता’ (11 जनवरी 2009 अंक) में इस बाबत सूचना
प्रकाशित हुई है। लिखा गया है कि यह मिलन समाजवादी आंदोलन के आदर्शों, मूल्यों और नीतियों को याद करने के लिए आयोजित किया गया है।
यह भी लिखा गया है कि मिलन के अवसर का उपयोग देश के विभिन्न भागों में पूरा साल
मिलजुल कर कार्यक्रम करने की जमीन तैयार करने में किया जाएगा। सूचना के साथ किसी
संस्था या व्यक्ति का नाम नहीं है। जाहिर है, वह संपादक सुरेंद्र मोहन जी की तरफ से निकाली गई है।
किसी कार्यक्रम में दो
समाजवादी नेता मिल जाएं तो उनके बीच थोड़ी देर के विलाप के बाद दूसरी बात एका करने
की होती है। जनवरी के पहले सप्ताह में दिल्ली में वयोवृद्ध् समाजवादी नेता कैप्टन
अब्बास अली के सम्मान में एक कार्यक्रम हुआ। उसमें मुलायम सिंह यादव ने कहा कि
समाजवादियों को इक्ठ्ठा होना चाहिए। पासवान ने भी इसकी जरूरत बताई। अपने अध्यक्षीय
भाषण में सुरेंद्र मोहन ने कहा कि मुलायम सिंह की इच्छा पूरी करने का लोहिया जन्मशताब्दी
वर्ष से अच्छा अवसर नहीं हो सकता। सभी पार्टियों के महत्वपूर्ण समाजवादी 300 के आस-पास की संख्या में 21-22 मार्च को दिल्ली में जुटें। मुलायम सिंह ने सुरेंद्र मोहन
को ही यह ‘बड़ा’ काम करने को कहा। इस तरह मिलन का संबंध पहले से बन रही
योजना के साथ बैठ गया। उसी दिन से सुरेंद्र मोहन सभी पार्टियों के समाजवादियों से
संपर्क कर रहे हैं।
जाहिर है, एका की इस कवायद से एका नहीं होने जा रहा है। कांग्रेस और
भाजपा के पिछलग्गू नेताओं के लिए मुख्यधारा राजनीति में अपनी कीमत बढ़ाने का यह
अवसर होगा। उसमें लोहिया कहीं नहीं होंगे। हां, देश को यह प्रचलित संदेश निर्णायक रूप से जरूर चला जाएगा कि
समाजवादियों की कोई विचारधारा, पार्टी या नैतिकता नहीं
होती। आगे साथियों को सोचना है।
No comments:
Post a Comment