जिंदग जब कहीं दूर रहने लगे
फ़ासले मौत के तब सिमटने लगे
वार उसने न गहरा बहुत था किया
वार उसने न गहरा बहुत था किया
ये तो हम थे कि खंजर पकड़ने लगे
उसने अपनी तरफ से कमी कुछ न की,
उसने अपनी तरफ से कमी कुछ न की,
ये तो हम थे कि हिज्र तड़पने लगे।
वो तो कहते हैं कुछ भी लिखा ही नहीं,
वो तो कहते हैं कुछ भी लिखा ही नहीं,
हम दिल अपना,उनकी आंखों में पढ़ने लगे।
जाते-जाते पलट कर भी देखा नहीं,
जाते-जाते पलट कर भी देखा नहीं,
कोई सुन ना ले, हम ऐसे सिसकने लगे।
जहां उम्र को निकलना था सफर के लिए
जहां उम्र को निकलना था सफर के लिए
हम उस मोड़ पर जा ठहरने लगे।
जिंदगी जब कहीं दूर रहने लगे,
जिंदगी जब कहीं दूर रहने लगे,
फ़ासले मौत के तब सिमटने लगे।
राजेश कुमार
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