,,,,अपनी कविता,,,,,
मैं क्यों नहीं अपने और,
मैं क्यों नहीं अपने और,
साथियों की तरह जीता हूं वर्तमान में।
मैं क्यों झांकना चाहता हूं,
अपने बीते हुए हर-एक लम्हों में ।
सुखी पत्तियों की भांति,
उन यादों को सहेजकर क्या करुंगा।
क्योंकि एक दिन तो यादें,
इतनी सूख जाएंगी ,कि सहेजना मुश्किल होगा।
मैं ये भी नहीं चाहता कि,
यादें सूखी पत्तियों का चूरा बन जाए।
फिर भी बीते हुए लम्हों में झांककर,
कुछ अपनी गलतियां सुधारना और कुछ दोहराना चाहता हूं।
जरुरी है उन रिक्त स्थानों को पाटना,
जहां रह गया है एक अंतराल,इतने दिन बीतने के बाद भी,
और सबसे जरुरी है, उन जगहों पर सफाई पेश करना ,
जिसका वक्त ने मौका ही नहीं दिया।
राजेश कुमार
No comments:
Post a Comment